हर भूखे के चेहरे पर मुस्कान — अन्नपूर्णा मुहिम बनी मानवता की पहचान
गरीबी और संघर्ष के बीच उम्मीद की किरण बनी ‘अन्नपूर्णा मुहिम’

बलरामपुर रामानूजगंज..कभी किसी थाली में अन्न न हो और किसी माँ की आँखों में बच्चों के लिए भूख के आँसू हों — तो वहाँ मानवता की सच्ची परीक्षा होती है। ऐसे ही संघर्ष और अभाव के अंधेरे में डूबी सविता आयाम के जीवन में आज नई किरण जगी है। संत रामपाल जी महाराज द्वारा चलाई जा रही “अन्नपूर्णा मुहिम” ने उनके परिवार को न केवल भोजन प्रदान किया, बल्कि जीने का नया साहस और आत्मविश्वास भी दिया है।
32 वर्षीय सविता आयाम के जीवन की कहानी हृदय को झकझोर देती है। सन 2021 में उनके पति का बीमारी के कारण निधन हो गया। ससुर और देवर पहले ही संसार छोड़ चुके थे। अब घर में केवल सविता और उनके दो नन्हे बच्चे हैं — बेटा गोलू आयाम (11 वर्ष, कक्षा 5वीं) और बेटी लक्ष्मी आयाम (6 वर्ष, आंगनवाड़ी छात्रा)।
कभी इस परिवार की अपनी जमीन थी, परंतु अब वह दूसरों के कब्जे में चली गई है। आज उनके पास न कोई स्थायी आमदनी है, न पेंशन, न ही कोई पशु। राशन कार्ड से मात्र 20 किलो चावल मिलता है, जिससे दो वक्त का भोजन जुटाना भी कठिन हो जाता है। मजबूरी में सविता अपने मायके से चावल मांगकर किसी तरह बच्चों का पेट भरती हैं। घर की हालत भी अत्यंत दयनीय है — कच्ची दीवारों में दरारें पड़ चुकी हैं, बरसात में छत से पानी टपकता है और एक कमरा पूरी तरह रहने लायक नहीं बचा।
इस कठिन समय में संत रामपाल जी महाराज जी की “अन्नपूर्णा मुहिम” ने इस परिवार मदद के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया। इस मुहिम के अंतर्गत सविता आयाम को चावल, दाल, बेसन, साबुन, आलू और प्याज जैसी आवश्यक खाद्य सामग्री प्रदान की गई, जिससे उनके परिवार को राहत मिली और बच्चों के चेहरों पर मुस्कान लौटी। खाद्य सामग्री के अतिरिक्त, इस परिवार को जीवनयापन के लिए आवश्यक कुछ अन्य वस्तुएँ भी दी गईं —
प्रत्येक सदस्य के लिए दो-दो कपड़े, चप्पल, एक कढ़ाही, तवा, बाल्टी और एक खाट।
इन वस्तुओं से सविता और उनके बच्चों को न केवल सुविधाएं मिलीं, बल्कि यह एहसास भी हुआ कि समाज में आज भी ऐसे लोग हैं जो निःस्वार्थ भाव से दूसरों के दुःख में साथ खड़े हैं।
यह राशन किट केवल एक बार के लिए नहीं है इनका एक काट दिया गया है राशन खत्म होने से पहले यह जब भी संपर्क करेंगे तो 2 दिन के अंदर इन तक राशन पहुंचा दिया जाएगा।
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