इंदरी पाठ में धूमधाम से मना विश्व आदिवासी दिवस, कोलंबिया के पारंपरिक गमछा से जिला अध्यक्ष का सम्मान
महिला संरक्षक महिमा कुजुर ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि

बलरामपुर जिले के इंदरी पाठ में शनिवार को विश्व आदिवासी दिवस पूरे उत्साह और सांस्कृतिक गरिमा के साथ मनाया गया। बिरजिया समाज ने अपने पूर्वजों से विरासत में मिली पारंपरिक वेशभूषा धारण कर पारंपरिक गीत-नृत्यों के माध्यम से अपनी संस्कृति का अद्भुत प्रदर्शन किया। कार्यक्रम में उमड़े जनसैलाब में बिरजिया समाज के सदस्य शामिल हुए, जिससे पूरा क्षेत्र उत्सवमय हो उठा।
वक्ताओं ने समाज से नशामुक्ति अपनाने और शिक्षा को प्राथमिकता देने की अपील की। इसी अवसर पर समाजसेवी ममता कुजूर ने छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के जिला अध्यक्ष बसंत कुजूर को कोलंबिया देश के पारंपरिक गमछा से सम्मानित किया।
सम्मान ग्रहण करते हुए बसंत कुजूर ने कहा कि
विश्व आदिवासी दिवस हमारे समाज के गौरव और एकता का प्रतीक है। यह दिन नई चेतना और उजाला बिखेर रहा है। हमें और मजबूत होने की आवश्कता है जल-जंगल-जमीन की रक्षा करनी है और अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर आने वाली पीढ़ी को सशक्त बनाना है। बिरजिया समाज को उनका अधिकार मिलना हमारी एकता और संघर्ष की बड़ी जीत है। शिक्षा से बड़ा कोई हथियार नहीं, और इच्छा से बड़ी कोई ताकत नहीं है
महिला संरक्षक महिमा कुजुर ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि
यह केवल उत्सव नहीं, बल्कि अपनी जड़ों, पहचान और अधिकारों को याद करने का दिन है। आदिवासी जीवनशैली धरती, जंगल, जल और संस्कृति के साथ गहरे रिश्ते की पहचान है। हमें अपनी भाषा, रीति-रिवाज और परंपराओं को न सिर्फ जीवित रखना है, बल्कि गर्व से अगली पीढ़ी को सौंपना है। महिलाएँ इसमें सबसे अहम भूमिका निभाती हैं, क्योंकि वे बच्चों को संस्कृति की पहली शिक्षा देती हैं।”
पहली बार इंदरी पाठ पहुँची ममता कुजूर ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा
यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता ने मन मोह लिया। इस वर्ष का अंतरराष्ट्रीय थीम ‘आत्मनिर्भरता और भोजन की सुरक्षा एवं संप्रभुता’ हमारे जीवन दर्शन से जुड़ा है। हमें कोदो-कुटकी, बाजरा और जंगल से मिलने वाले पारंपरिक खाद्य पदार्थों को संरक्षित करना चाहिए। सरकार को जल, जंगल और जमीन की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि यही हमारी असली पूँजी और पहचान है।
दिनभर चले इस आयोजन में पारंपरिक नृत्य, गीत, सामूहिक झूमर और लोकनृत्यों ने वातावरण को जीवंत कर दिया। बच्चों और युवाओं ने पारंपरिक परिधान पहनकर अपनी संस्कृति के रंग बिखेरे। कार्यक्रम ने न केवल आदिवासी एकता और सांस्कृतिक गौरव का संदेश दिया, बल्कि यह संकल्प भी दिलाया कि आने वाली पीढ़ी अपनी जड़ों से जुड़ी रहेगी।
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