
कबीर दास ने बताया कि इस पूरे षड्यंत्र में नोटरी की भूमिका भी कम संदिग्ध नहीं है।
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पटवारी, नोटरी और तहसीलदार की भूमिका पर उठे गंभीर सवाल *— “गरीब किसान की पुश्तैनी जमीन हड़पने की साज़िश”*
🛑 *राजपुर।* 🛑
जनपद बलरामपुर के अंतर्गत आने वाले शांत ग्राम कोदौरा में एक ऐसा फर्जीवाड़ा उजागर हुआ है जिसने न केवल स्थानीय प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं, बल्कि गरीब किसानों की सुरक्षा और न्याय व्यवस्था पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं।
यह मामला सिर्फ कागज़ों का खेल नहीं, बल्कि एक गरीब किसान की रगों में दौड़ती पीढ़ियों की मेहनत और आस्था पर प्रहार है।
*🔹 कबीर दास की करुण पुकार — “मेरे पुरखों की मिट्टी छीन ली गई”*
ग्राम कोदौरा के कबीर दास, जो एक निर्धन किसान हैं, ने अपने बयान में बताया कि हल्का नंबर-1 के पटवारी अजेंद्र ने कुछ प्रभावशाली व्यक्तियों की सांठगांठ से कूट रचित दस्तावेज़ों के माध्यम से उनकी पुश्तैनी भूमि का नामांतरण किसी अन्य के नाम करा दिया।
*गरीब किसान कबीर दास कहते हैं —*
> “यह जमीन मेरे पूर्वजों की विरासत है। इसी मिट्टी में उनका पसीना, उनका आशीर्वाद और मेरा भविष्य बसता है। पर आज कुछ लोगों की लालच और प्रशासनिक मिलीभगत ने इसे छीनने की कोशिश की है। यह सिर्फ मेरी जमीन नहीं, मेरी आत्मा का टुकड़ा है।”
उनकी आवाज़ में केवल पीड़ा नहीं, बल्कि सदियों से संघर्षरत किसान वर्ग की गूंज सुनाई देती है — एक ऐसी गूंज जो व्यवस्था के गलियारों में न्याय की मांग कर रही है।
*🔹 नोटरी की भूमिका संदिग्ध — सत्यापन के नाम पर ठगी का खेल*
कबीर दास ने बताया कि इस पूरे षड्यंत्र में नोटरी की भूमिका भी कम संदिग्ध नहीं है।
बिना किसी भौतिक सत्यापन, जांच या पहचान के, फर्जी दस्तावेजों को वैध ठहराया गया।
*यह स्थिति प्रशासनिक ईमानदारी पर कुठाराघात है।*
> “यदि नोटरी सत्यापन ही झूठ का प्रमाणपत्र बन जाए, तो फिर न्याय का आधार कहाँ बचेगा?” — ग्रामीणों ने तीखा सवाल उठाया।
*🔹 न्याय की गुहार — “यह मेरी नहीं, हर किसान की लड़ाई है”*
जब कबीर दास को इस षड्यंत्र की भनक लगी, उन्होंने तत्काल तहसील न्यायालय राजपुर में आवेदन देकर न्याय की गुहार लगाई।
उनका कहना है —
> “यह लड़ाई सिर्फ मेरी नहीं है, यह हर उस किसान की है जो अपनी मेहनत की कमाई से धरती को सींच रहा है। अगर आज मेरी आवाज़ दबा दी गई, तो कल किसी और का अस्तित्व मिटा दिया जाएगा।”
कबीर दास ने स्पष्ट कहा कि यह मामला केवल नामांतरण नहीं, बल्कि राजस्व विभाग की जड़ों में फैले भ्रष्टाचार की सच्ची तस्वीर है।
उन्होंने चेताया कि यदि इस पर समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो यह गरीब किसानों के अधिकारों की कब्रगाह बन जाएगा।
*🔹 प्रशासनिक प्रतिक्रिया — जांच के आदेश, कार्रवाई का वादा*
मामले की गंभीरता को देखते हुए तहसीलदार राजपुर ने प्रारंभिक जांच के आदेश जारी किए हैं।
उन्होंने कहा —
> “जांच में दोषियों की पुष्टि होते ही कठोर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। किसी भी स्तर पर लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। प्रशासन पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करेगा।”
हालांकि ग्रामीणों का कहना है कि सिर्फ जांच का आदेश नहीं, ठोस नतीजे चाहिए।
🔹 ग्रामवासियों में आक्रोश और एकजुटता — “न्याय न मिला तो आंदोलन होगा”
ग्राम कोदौरा के नागरिकों में गहरा आक्रोश व्याप्त है।
वे कहते हैं —
> “यह मामला सिर्फ कबीर दास का नहीं, यह हर किसान का है जो आज भी अपनी जमीन पर ईमानदारी से हल चला रहा है। अगर उसकी पुश्तैनी जमीन भी सुरक्षित नहीं, तो फिर कौन सुरक्षित है?”
युवा पत्रकारों सामाजिक कार्यकर्ता और युवाओं ने भी आवाज़ उठाई —
> “ऐसे फर्जी नामांतरण प्रकरणों की निष्पक्ष जांच हो, और दोषियों को ऐसी सजा दी जाए जो आने वाली पीढ़ियों को याद रहे। अब गरीब की ज़मीन पर डाका नहीं पड़ेगा।”
ग्रामीणों ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक न्याय नहीं मिलेगा, तब तक वे शांत नहीं बैठेंगे।
जन आंदोलन की चेतावनी देकर उन्होंने प्रशासन को जगाने का प्रयास किया है।
🔹 सामाजिक संदेश — “किसान की ज़मीन छीनना उसकी आत्मा को रौंदना है”
यह घटना केवल एक व्यक्ति का संघर्ष नहीं, बल्कि पूरे किसान वर्ग की व्यथा है।
आज जब देश डिजिटल इंडिया और ई-गवर्नेंस की बात करता है, तब भी अगर गरीब किसान फर्जी दस्तावेज़ों के बोझ तले कुचला जा रहा है, तो यह व्यवस्था की सबसे बड़ी विफलता है।
> “भूमि पर किसान का अधिकार छीनना केवल संपत्ति हड़पना नहीं, उसकी आत्मा को चोट पहुँचाना है।”
अब सवाल यह है कि —
क्या प्रशासन इस पुकार को सुनेगा?
क्या न्याय की डगर पर गरीब किसान को उसका हक़ मिलेगा?
या फिर यह प्रकरण भी फाइलों की धूल में दबकर एक और अधूरी कहानी बन जाएगा?
🌾 यह मामला प्रशासन की परख की घड़ी है — न्याय अगर जीवित है, तो अब दिखना चाहिए!
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