क्राइमछत्तीसगढ़राज्य एवं शहर

सत्ता के अहंकार अधिकारी का हिंसक चेहरा छत्तीसगढ़ जनसंपर्क कार्यालय में हुई,,

पत्रकारों से मारपीट की घटना में असल दोषी कौन?

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यह लेख असिस्टेंट प्रोफेसर/सामाजिक कार्यकर्ता अकील अहमद अंसारी के फेसबुक वाल से लिया गया है। (नीचे लिंक पर क्लिक करके पढ़ें)

 

https://www.facebook.com/share/v/1BT9HDTU9o/?mibextid=wwXIfr

 

यहाँ पर पूरा वीडियो और दर्ज एफ़आईआर आपके समक्ष सोशल मीडिया पर मौजूद है —

 

https://www.facebook.com/share/v/19y8CuKhYo/?mibextid=wwXIfr

 

मैं उक्त वीडियो की पुष्टि नहीं करता परंतु दर्ज एफ़आईआर में छत्तीसगढ़ जनसंपर्क संचनालय के विभागीय अपर संचालक संजीव तिवारी ने जो आवेदन दिया है, उसमें उन्होंने स्वयं लिखा है… “मैं अपने सीट से उठकर उन्हें कक्ष से बाहर निकालने की कोशिश की…FIR में दर्ज यह बयान वीडियो से हूबहू मेल खाता है। पूरे एफ़आईआर को पढ़िए- यह स्वयं इस वीडियो की पुष्टि कर दे रही है! अब ये वीडियो सही है या संजीव तिवारी ये आप तय कीजिए ?

 

वीडियो और सच्चाई के दो पहलू…

 

प्रमुख मीडिया संस्थान पूरे वीडियो में से केवल दो दृश्य अपने सहूलियत से छाँटकर दिखा रहे हैं, यही दिखाता है कि कैसे ये नामी मीडिया घराने सच को झूठ और झूठ को सच बनाकर जनता तक पेश करते हैं।

 

वीडियो में साफ़ दिखता है…

 

• काला शर्ट पहना व्यक्ति संजीव तिवारी के कक्ष में जाकर शिष्टाचार से बात करता है।

• न तो अभद्रता है, न तोड़फोड़।

• किसी ने संजीव तिवारी को उकसाया नहीं।

परंतु तिवारी अपनी कुर्सी से उठकर काले शर्ट वाले व्यक्ति का गर्दन पकड़ते हैं, उसे अपमानित करते हुए बाहर निकालते हैं, फिर दूसरे पतले-दुबले व्यक्ति का गला दबाते हैं। अपने साथी की जान बचाने के लिए काले कपड़े वाला व्यक्ति संजीव तिवारी का गला पकड़ता है, 

सिर्फ़ तब तक जब तक उसका साथी तिवारी के चंगुल से छूट नहीं जाता। और जैसे ही उसका साथी सुरक्षित होता है, वह तिवारी को छोड़ देता है। भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 की धारा 35-किसी की जीवन रक्षा में किया गया बल प्रयोग अपराध नहीं हैं।

 

घटना के बाद का दृश्य…

 

अगले सीन में वही व्यक्ति गुस्से में भी “तिवारी जी” कहकर संबोधित करता है, “आप हमारे लिए यहाँ बैठे हैं” जैसे शब्दों का इस्तेमाल करता है, जबकि संजीव तिवारी फिर से पतले-दुबले युवक पर हमला करते हैं! वीडियो रिकॉर्ड हो रहा था — इस बात से बेखबर, संजीव तिवारी बाद में खुद पर पहले हमला करने का झूठा आरोप लगाने लगे।

 

एफ़आईआर और पुलिस की कार्रवाई पर सवाल…

 

एफ़आईआर आवेदन में संजीव तिवारी ने लिखा है — “बुलंद छत्तीसगढ़ समाचार के संपादक मनोज पांडे कक्ष में आए और इसी विषय पर चर्चा करने लगे।” कहीं भी उन्होंने मनोज पांडे पर मारपीट या अभद्रता का आरोप नहीं लगाया! फिर भी 10-10-2025 की रात 1:37 AM बजे दो वर्दीधारी पुलिस और 8-10 लोग मनोज पांडे के घर का गेट तोड़कर जबरन क्यों घुसे?

1. एफआईआर तो “04 अज्ञात लोगों” के नाम पर है, तो पुलिस मनोज पांडे के घर क्या करने आई थी?

2. पुलिस ने सीसीटीवी का DVR क्यों छीना?

3. जब मनोज पांडे आरोपी है ही नहीं ना ही एफ़आईआर में एक भी धारा 7 वर्ष की सजा या उससे अधिक वाली है तो फिर मनोज पांडे के घर पुलिस क्यों गई थी ?

4. क्या पुलिस के पास वारंट था? बिना वारंट तलाशी कब ली जा सकती है?

बिना सर्च वारंट के CrPC 165, 149 में पुलिस केवल तभी तलाशी ले सकती है जब —

  केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह 4-5 अप्रैल को छत्तीसगढ़ दौरे पर, बस्तर और रायपुर में कार्यक्रम

• एफआईआर गंभीर अपराधों से जुड़ी हो।

• आरोपी घर में छिपा हो या सबूत नष्ट करने की संभावना हो।

• आपातकालीन परिस्थिति हो।

 

पर यहाँ तो —

 

🚫 कोई गंभीर अपराध नहीं,

🚫 कोई घरेलू हिंसा नहीं,

🚫 मनोज पांडे का एफ़आईआर में नाम नहीं,

🚫 कोई सार्वजनिक खतरा नहीं।

 

फिर यह बर्बरता क्यों?

 

और जब घर में महिलाएँ थीं, तो महिला पुलिस कहाँ थी? मनोज पांडे ने संजीव तिवारी के दो दशकों से ट्रांसफर ना होने की खबर अपने अखबार में लगायी क्या ये उसका प्रतिशोध था?

डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल (Supreme Court Guideline)

यदि पुलिस सिविल ड्रेस में गई, नाम-प्लेट नहीं थी, या गिरफ्तारी वारंट नहीं था — तो यह स्पष्ट रूप से सुप्रीम कोर्ट गाइडलाइन का उल्लंघन है।

 

अब सवाल उठते हैं…

 

एफ़आईआर के आवेदन में संजीव तिवारी ने ख़ुद लिखित दिया है “वरिष्ठ पत्रकार और संपादक चैनल इंडिया श्री पवन दुबे से बातचीत कर रहा था तभी 04 लोग मेरे कमरे में घुस आए..”

• क्या बातचीत करना “शासकीय कार्य” है ?

• जब खुद तिवारी ने कहा कि वे “पत्रकार से चर्चा कर रहे थे”,

तो “शासकीय कार्य में बाधा” वाली धारा क्यों लगाई गई?

• क्या वीडियो में कोई अपशब्द या तोड़फोड़ दिख रही है? फिर अपशब्द वाली धारा क्यों ?

यदि कोई अन्य वीडियो है जिसमें तिवारी पर हमला हुआ हो तो उसे वे जारी करें?

 

अब आइए असल अपराध की तरफ…

 

यदि कथित पत्रकार ब्लैकमेलर हैं, तो उन्हें कानूनी दंड दीजिए — परंतु संजीव तिवारी का गला दबाने, अपमानित करने और हमला करने का अपराध नज़रअंदाज़ क्यों? भारतीय दंड संहिता / भारतीय न्याय संहिता के अनुसार संजीव तिवारी पर यह अपराध बनता है।

 

🔹 धारा 323 – स्वेच्छा से चोट कारित करना

🔹 धारा 352 – बिना उकसावे के हाथापाई

🔹 धारा 504 – जानबूझकर अपमान करना

🔹 धारा 166 – पद का दुरुपयोग

🔹 धारा 166A – कानूनी कर्तव्य का उल्लंघन

🔹 धारा 307 – हत्या का प्रयास

🔹 संजीव तिवारी का दो दशक से ट्रांसफर नहीं होना और एक ही पद में बैठे रहना नियमों की अवहेलना नहीं है?

 

क्या कानून सबके लिए समान नहीं है?

क्या कानून केवल बड़े अधिकारियों की रक्षा के लिए है?

क्या एक सरकारी अधिकारी के अपराध को अनदेखा किया जाएगा?

क्योंकि वह “सिस्टम” का हिस्सा है?

 

महिलाओं से अभद्रता का पहलू…

 

लिखित वारंट न होते हुए भी यदि पुलिस ने घर में घुसकर DVR छीना, महिलाओं से अभद्रता की, या चूड़ी तोड़ी — तो यह धारा 452, 354, और 34 IPC के तहत अपराध है। पुलिस वालों पर अपराध पंजीबद्ध होना चाहिए।

 

कॉरपोरेट मीडिया की भूमिका…

 

पूरा वीडियो देखकर भी जो प्रतिष्ठित अख़बार तिवारी के पक्ष में फर्जी FIR पर फर्जी खबरें चला रहे हैं, उनका जनता द्वारा बहिष्कार क्यों न किया जाए?

 

अंतिम प्रश्न…

 

“आजकल ज्यादातर पत्रकार ब्लैकमेलर हैं” — यह धारणा फैलाई जाती है, लेकिन क्या सरकारी अधिकारी या कर्मचारी भ्रष्ट नहीं होते?

 

सच्चाई यह है…

 

पत्रकारों का चरित्र हनन करना कॉरपोरेट अखबारों के लिए आसान है, क्योंकि इन्हें जनसंपर्क अधिकारियों से करोड़ों के विज्ञापन जो लेने हैं!

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Vijay Singh

विजय सिंह, समीक्षा न्यूज़ के मुख्य संपादक हैं। एवं वर्षों से निष्पक्ष, सत्य और जनहितकारी पत्रकारिता के लिए समर्पित एक अनुभवी व जिम्मेदार पत्रकार के रूप में कार्यरत हूँ।

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